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प्रेम भरी पाती

शीर्षक - प्रेम भरी पाती प्रेम भरी पाती लिखती हूँ, मैं अपनों के नाम। रहे सुरक्षित सब मेरे अपने, सब अपने-अपने धाम।। ज़हर फिज़ा में घुल सा गया है, नैनों का काजल धुल सा गया है। मिल नहीं पाती मैं अपनों से, सब्र का सागर खुल सा गया है। मिटेगा कब ये क़हर-कोरोना, कब होगा जीवन गुलफ़ाम। प्रेम भरी पाती लिखती हूँ, मैं अपनों के नाम।। कैसे हैं सब ये लिखती हूँ, पल-पल न कटता ये लिखती हूँ। बिन देखे बोझिल हैं नैना, चाह मिलन की ये लिखती हूँ। थक गई आंखें तकते-तकते, पन्थ निहारे हो गई है शाम। प्रेम भरी पाती लिखती हूँ, मैं अपनों के नाम।। रख लेना सब अपना ख्याल, जन-जन का जीना हुआ मुहाल। रखना सफाई घर-आंगन की, फिर जीवन हो जाएगा निहाल। मिलन की वर्षा फिर होगी और, सबके बनेंगें काम। प्रेम भरी पाती लिखती हूँ, मैं अपनों के नाम।। -शालिनी मिश्रा तिवारी  ( बहराइच,उ०प्र० )

मौन का हाहाकार

*मौन का हाहाकार क्या,कभी हृदय पिघलाएगा। शब्दों की कतार जो,समझा न सकी, क्या कभी मौन, बांच पाएगा। रह रह कर उठती रही, अंतर्मन में, स्मृतियों की आंधी, क्या कभी मौन, उन नैनों से नीर बहा पाएगा। नही पता ये पुकार 'उन' तक, जाएगी भी या नहीं, क्या कभी मौन, ये संदेशा प्रेषित कर पाएगा। स्तब्द्ध है सन्नाटा, निशा हुई आने को आतुर, क्या कभी मौन, आशा का दीप, जला पाएगा। है अचेत देह,भाव  शून्य , क्या कभी मौन, हृदय व्यथित कर पाएगा। निर श्वास जीवन है ' उनके बिना' क्या कभी मौन, बता पाएगा। क्या कभी हृदय पिघलाएगा................. नाम- शालिनी मिश्रा तिवारी
शीर्षक - शहरों में पसरा सन्नाटा ये कैसी विपदा आयी है, हर तऱफ खामोशी छायी है। मॉल दुकाने सब बन्द पड़े हैं, हर तरफ़ उदासी आयी है।। शहरों में सन्नाटा पसरा है, डर कोरोना बिखरा है। जन-जन अब जन से डरता है, दूरी सब से तय करता है। गुलज़ार हुआ करते थे अबतक, वो चौक,बाजार वीरान हुए। जहाँ कोलाहल गुंजन था अब, वो दर-कूँचे श्मशान हुए।। है मरघट सा अब सन्नाटा, चंहु ओर कोई दिखता ही नहीं। दो पल गुफ़्तगू सुनने को अब, दोस्त यार रुकता ही नही।। अब इति हो जाये समय घड़ी की, ईश्वर से अरदास यही। आ जाये जीवन में फिर से, नवजीवन और प्रकाश वही।। - शालिनी मिश्रा तिवारी  ( बहराइच,उ० प्र० )
माँ कुष्मांडा स्तुति बन बैठी हूँ आज सवाली, माँ कुष्मांडा तेरे द्वारे। अपने भक्तजनों के कर दो, माँ तू  वारे-न्यारे। जयति-जयति माँ कुम्हड़ माता, आदि शक्ति तेरा जगराता। भक्तों की हुँकार भरी है, विपदा सबपर आन परी है। अमृत कलश सुधा बरसाओ, क्लेश-द्वेष सब मार गिराओ। रत्नगर्भा कर रही चीत्कार, अपनी महिमा कर अपरम्पार। अष्टभुजा माँ खड़गों वाली, सृष्टि को तू रचने वाली। तेरी सृष्टि पर फैला विषधर, कर संहार तू बनके काली। हम भक्तों की सुन ले पुकार, झेल रहे हैं प्रकृति की मार। करेंगें कभी न प्रकृति से खिलवाड़, कर दो माफ़ माँ अबकी बार।। -शालिनी मिश्रा तिवारी  ( बहराइच, उ०प्र० )
माँ चन्द्रघंटा स्तुति तृतीयं स्वरूप चन्द्रघंटा माँ मांगू ये वरदान जगजननी माँ जग कल्याणी कर दो जग कल्याण कोरोना महामारी का कर दो दूर अँधेरा बंदी बन सब बैठे हैं हो जाए सबका सवेरा शक्ति स्वरूपा चन्द्रघंटा माँ स्वर्ण सा चमके रूप सौम्य शीलता की तुम मूरत कर दो निरोग की धूप अपनी निधि से सबको कर दो माँ तू मालामाल स्वस्थ कामनापूरित जीवन हो हो जाये सब जन निहाल रौंद कुचल दो दस हाथों से कोरोना माहमारी अपने तेज वेग से पधारों करके सिंह सवारी केसर मीठा भोग लगाऊँ कर दो ये उपकार कोई रहे न भूखा-प्यासा कर दो संकट पर वार।। -शालिनी मिश्रा तिवारी ( बहराइच,उ०प्र० )

नवरत्न

नव रत्न बनाया जीवन मेरा, कर दिया फिर बे-नूर। जीवन के कल्पित रूप जो देखे , हो गए सारे धूल।। आठ पहर तीनों पन तरसूं, जीवन है अब मेरा, आठ- आठ के आंसू रोउ। अब होगा नही सवेरा।। तीन ताल स्पंदन होके, पंचम स्वर अरदास लगाऊं। क्यों रूठे वो स्वप्न मेरे, मैं कैसे उन्हें मनाऊँ।। एक हृदय की पीड़ा लेकर, तीनो लोक में घूमूं। पग उनके थे जहाँ पड़े, मैं उन राहों को चूमूँ।। हे माँ ! पंचतत्व इस देह का अस्तित्व मिटा कर, कर दो मुझको शून्य अब कर दो मुझको शून्य.