माँ कुष्मांडा स्तुति
बन बैठी हूँ आज सवाली,
माँ कुष्मांडा तेरे द्वारे।
अपने भक्तजनों के कर दो,
माँ तू वारे-न्यारे।
जयति-जयति माँ कुम्हड़ माता,
आदि शक्ति तेरा जगराता।
भक्तों की हुँकार भरी है,
विपदा सबपर आन परी है।
अमृत कलश सुधा बरसाओ,
क्लेश-द्वेष सब मार गिराओ।
रत्नगर्भा कर रही चीत्कार,
अपनी महिमा कर अपरम्पार।
अष्टभुजा माँ खड़गों वाली,
सृष्टि को तू रचने वाली।
तेरी सृष्टि पर फैला विषधर,
कर संहार तू बनके काली।
हम भक्तों की सुन ले पुकार,
झेल रहे हैं प्रकृति की मार।
करेंगें कभी न प्रकृति से खिलवाड़,
कर दो माफ़ माँ अबकी बार।।
-शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच, उ०प्र० )
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें