मौन का हाहाकार

*मौन का हाहाकार क्या,कभी हृदय पिघलाएगा।
शब्दों की कतार जो,समझा न सकी,
क्या कभी मौन,
बांच पाएगा।
रह रह कर उठती रही, अंतर्मन में,
स्मृतियों की आंधी,
क्या कभी मौन,
उन नैनों से नीर बहा पाएगा।
नही पता ये पुकार 'उन' तक,
जाएगी भी या नहीं,
क्या कभी मौन,
ये संदेशा प्रेषित कर पाएगा।
स्तब्द्ध है सन्नाटा, निशा हुई आने को आतुर,
क्या कभी मौन,
आशा का दीप, जला पाएगा।
है अचेत देह,भाव  शून्य ,
क्या कभी मौन,
हृदय व्यथित कर पाएगा।
निर श्वास जीवन है ' उनके बिना' क्या कभी मौन,
बता पाएगा।
क्या कभी हृदय पिघलाएगा.................

नाम- शालिनी मिश्रा तिवारी

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