शीर्षक - शहरों में पसरा सन्नाटा
ये कैसी विपदा आयी है,
हर तऱफ खामोशी छायी है।
मॉल दुकाने सब बन्द पड़े हैं,
हर तरफ़ उदासी आयी है।।
शहरों में सन्नाटा पसरा है,
डर कोरोना बिखरा है।
जन-जन अब जन से डरता है,
दूरी सब से तय करता है।
गुलज़ार हुआ करते थे अबतक,
वो चौक,बाजार वीरान हुए।
जहाँ कोलाहल गुंजन था अब,
वो दर-कूँचे श्मशान हुए।।
है मरघट सा अब सन्नाटा,
चंहु ओर कोई दिखता ही नहीं।
दो पल गुफ़्तगू सुनने को अब,
दोस्त यार रुकता ही नही।।
अब इति हो जाये समय घड़ी की,
ईश्वर से अरदास यही।
आ जाये जीवन में फिर से,
नवजीवन और प्रकाश वही।।
- शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच,उ० प्र० )
ये कैसी विपदा आयी है,
हर तऱफ खामोशी छायी है।
मॉल दुकाने सब बन्द पड़े हैं,
हर तरफ़ उदासी आयी है।।
शहरों में सन्नाटा पसरा है,
डर कोरोना बिखरा है।
जन-जन अब जन से डरता है,
दूरी सब से तय करता है।
गुलज़ार हुआ करते थे अबतक,
वो चौक,बाजार वीरान हुए।
जहाँ कोलाहल गुंजन था अब,
वो दर-कूँचे श्मशान हुए।।
है मरघट सा अब सन्नाटा,
चंहु ओर कोई दिखता ही नहीं।
दो पल गुफ़्तगू सुनने को अब,
दोस्त यार रुकता ही नही।।
अब इति हो जाये समय घड़ी की,
ईश्वर से अरदास यही।
आ जाये जीवन में फिर से,
नवजीवन और प्रकाश वही।।
- शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच,उ० प्र० )
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