प्रेम भरी पाती

शीर्षक - प्रेम भरी पाती

प्रेम भरी पाती लिखती हूँ,
मैं अपनों के नाम।
रहे सुरक्षित सब मेरे अपने,
सब अपने-अपने धाम।।

ज़हर फिज़ा में घुल सा गया है,
नैनों का काजल धुल सा गया है।
मिल नहीं पाती मैं अपनों से,
सब्र का सागर खुल सा गया है।
मिटेगा कब ये क़हर-कोरोना,
कब होगा जीवन गुलफ़ाम।
प्रेम भरी पाती लिखती हूँ,
मैं अपनों के नाम।।

कैसे हैं सब ये लिखती हूँ,
पल-पल न कटता ये लिखती हूँ।
बिन देखे बोझिल हैं नैना,
चाह मिलन की ये लिखती हूँ।
थक गई आंखें तकते-तकते,
पन्थ निहारे हो गई है शाम।
प्रेम भरी पाती लिखती हूँ,
मैं अपनों के नाम।।

रख लेना सब अपना ख्याल,
जन-जन का जीना हुआ मुहाल।
रखना सफाई घर-आंगन की,
फिर जीवन हो जाएगा निहाल।
मिलन की वर्षा फिर होगी और,
सबके बनेंगें काम।
प्रेम भरी पाती लिखती हूँ,
मैं अपनों के नाम।।

-शालिनी मिश्रा तिवारी
 ( बहराइच,उ०प्र० )

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