नवरत्न

नव रत्न बनाया जीवन मेरा,
कर दिया फिर बे-नूर।
जीवन के कल्पित रूप जो देखे ,
हो गए सारे धूल।।
आठ पहर तीनों पन तरसूं,
जीवन है अब मेरा,
आठ- आठ के आंसू रोउ।
अब होगा नही सवेरा।।
तीन ताल स्पंदन होके,
पंचम स्वर अरदास लगाऊं।
क्यों रूठे वो स्वप्न मेरे,
मैं कैसे उन्हें मनाऊँ।।
एक हृदय की पीड़ा लेकर,
तीनो लोक में घूमूं।
पग उनके थे जहाँ पड़े,
मैं उन राहों को चूमूँ।।
हे माँ ! पंचतत्व इस देह का
अस्तित्व मिटा कर,
कर दो मुझको शून्य
अब कर दो मुझको शून्य.

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