भटकता मन का पंछी

 



3 - शीर्षक- भटकता मन का पँछी


नित दिन जाने कितनी

करता है दूरी तय

कहाँ कहाँ से आ जाता है घूम के

देख आता है कितनी

मुश्किलें

कितनी

दुश्वारियाँ परेशानियाँ

फिर भी 

न आता है चैन इसको

कोई कहता है

बावरा हो गया है

कोई कहता सम्हल जाएगा

एक दिन

पर ये मन का पँछी

नहीं बहलता किसी भी

हालातों में

बस मृग मरीचिका की भाँति

भटकता रहता है।।

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