राख को मत कुरेदिये
शीर्षक- राख को मत कुरेदिये
राख को मत कुरेदिये जल जाएंगे हाथ वरना।
अब तलक़ जो दफ़्न है तिश्नगी उभर जाएगी।।
कुछ राज़ बस होते हैं राज़ रहने के लिए।
क्यों करे पर्दाफ़ाश जानशीं मुकर जाएगी।।
दहकता लावा छुपाये बैठें हैं हम सर्द मौसम में।
खुल जाए जो हक़ीक़त तो रोशनी उतर जाएगी।।
शहरयार सा था मेरे वो दिल-ए-सल्तनत का।
गुफ़्तगू करूँ जज़्बात-ए-यार तो चाँदनी उघर जाएगी।।
बन गया फ़साना मेरे चैन-ओ-सुकून का।
हो जाए जो बयाँ राज़ तो बंदगी गुज़र जाएगी।।
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