ईद

शीर्षक - ईद
रहबरों का रहबर है,तू कर दे मुराद पूरी।
भटक रही हूँ सहरा में,कब तलक़ रहेगी दूरी।।

तेरे इश्क़ में हूँ मतवाली,मेरे दिल की तुझसे जुम्बिश।
तुझ बिन सारे हो गए हैं,मेरे सितारे गर्दिश।।

ईद पर दीदार दे ओ मेरे परवरदिगार।
रूह है तड़पती कब होगा वस्ल-ए-यार।।

रक़ीब भी गले लगे आया है ये त्यौहार।
ओ मेरे मालिक सब पर लुटा दो अपना प्यार।।

फ़र्हाद हुआ है मन,रब्त तुझसे अपना जोड़ के।
खाना-ए-दिल में मौला समाया,आई जंजीरे तोड़ के।।

आज का मंज़र आज की फिज़ा, तेरी कयादत है।
या इलाही बस तुझसे ही मेरी रफ़ाक़त है।।

ऊपर वाले रहम-ओ-करम थोड़ा सा बरसा दे
हो न कभी इश्क़ वालों को मिलने को तरसा दे

चैन-ओ-अमन का पाक़ सा है,आपस का सारा मेल।
रहे न कोई दीन दुखी,न खेले क़िस्मत कोई खेल।।

हो मन में न शिक़वा-गिला,हो आपस में भाईचारा।
छोटा बड़ा न कोई हो,मिलजुल के रहे संसार सारा।।

-शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच, उ०प्र० )



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