गुरु वंदना
गुरु वन्दना
है गुरु से श्रेष्ठ न कोई,
गुरु है जगत के ईश
गुरु बिन मूढ़ ही रहता जग,
गुरु हैं सबके अधीश
जब अज्ञान का घन गहराया
तेज पुंज तुम लिए खड़े थे
दिव्य अनुभूति की लौ में तुम
हम पर उपकार किये बड़े थे।
जब घनी हो अज्ञता वृष्टि,
बने हो तब -तब गिरीश।
है गुरु से श्रेष्ठ न कोई,
गुरु हैं सबके अधीश।।
अज्ञान के पथरीले पथ पर
नव ज्ञान का पुष्प खिलाया
भटके हुए मन को फिर से
सद्मार्ग का पन्थ दिखाया।।
हे दयानिधे अब कर दो
अपनी दया से मनीष।
है गुरु से श्रेष्ठ न कोई,
गुरु हैं जगत के ईश।।
इतनी कृपा अब करदो गुरुवर
मन-संकल्प न टूटे
जब-जब मन अब भटके
तब-तब वचन न निकले झूठे।।
तेरी कृपा से हो जाये
मूक भी तो वागीश।
है गुरु से श्रेष्ठ न कोई,
गुरु हैं जगत के ईश।।
गुरूकृपा की महिमा का अब
क्या मैं बखान करूँ
हो जाये जो तेरी कृपा तो
भवसागर पार करूँ।
ओ करुणा के सागर,
तुझको मैं नवाऊँ शीश।
है गुरु से श्रेष्ठ न कोई,
गुरु हैं जगत के ईश।।
- शालिनी मिश्रा तिवारी
( बहराइच,उ०प्र० )
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