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सीता की अग्निपरीक्षा कबतक

  शीर्षक -सीता की अग्निपरीक्षा कब तक क्यों छली जाती है हर बार, टूट जाते हैं भावों के सार। कम होती नही नारी की वेदना, हिल-हिल जाते विश्वास के तार। अधिपति का अधिकार कब तक। सीता की अग्निपरीक्षा कब तक।। नारी का सर्वस्व भी पाकर, संतुष्ट नहीं होता वो सहचर। लाख करे मनुहार नारी, हो जाये विश्वास जर्जर। पवित्रता का आधार कब तक। सीता की अग्निपरीक्षा कब तक।। हे पुरूष तेरे सन्देह का सागर, खड़ा कर देती मृत्यु मुख लाकर। अपनी प्रिया पर शक क्यूँ करता, भरोसे का दामन क्यों थामे न आकर। वामा बने गंगा की धार कब तक। सीता की अग्निपरीक्षा कब तक।।