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मन की दूरी

 मन से है क्यूँ मन की दूरी, संग हूँ पर है क्या मज़बूरी। रह गए अनकहे कितने प्रश्न, होगी कब मेरी साध ये पूरी।। नित भावों का घिर-घिर जाना, उमड़-घुमड़ के सीपज बरसाना। है लागी कैसी चोट न जाने, बिन बरखा सावन हर्षाना।। है कसक दबी जो मन के आँगन, नित अकुलाहट,तड़पत हर पल। अनकहे शब्द की गठरी बन, उर-पन्नों पर बहे नयन जल।। कुछ मुझमें कुछ तुम में बाकी, मौन रहेगा कब तक संवाद। कब फूलेगी बगिया फिर से, भृमर करेंगे कब मधुवन आबाद।। -शालिनी मिश्रा तिवारी ( बहराइच,उ०प्र० )